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क्या प्रेम बाद में भी हो सकता है, पर सम्भोग नहींक्या प्रेम बाद में भी हो सकता है, पर सम्भोग नहीं? |
किसी कवि ने एक बार बड़ी ही चुभती हुई बात कही थी —
"प्रेम तो उम्र ढलने के बाद भी हो सकता है...
लेकिन सम्भोग केवल एक उम्र तक ही संभव है।
इसलिए जब कभी चुनना हो, तो सम्भोग को चुनो..."
शायद यह कथन कुछ लोगों को असहज करे, पर यह हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई भी बयां करता है।
🥰 प्रेम को अक्सर शाश्वत कहा जाता है — मन से मन का बंधन। लेकिन शारीरिक आकर्षण और उसकी पूर्ति, जिसे हम संभोग कहते हैं, उसका समय सीमित होता है। जैसे-जैसे शरीर की उम्र बढ़ती है, उसकी क्षमताएं भी घटती जाती हैं।
🤔 तो क्या इसका मतलब यह है कि हमें पहले देह को चुनना चाहिए?
या फिर मन और आत्मा के जुड़ाव को?
यह एक दार्शनिक प्रश्न है — और इस पर विचार करने का तरीका हर व्यक्ति के अनुभव, संस्कार और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है।
कई बार यह सवाल मज़ाक़ की तरह उठता है, मगर इसके पीछे छिपी गहराई को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
आज हम उसी सोच पर बात करेंगे, जो एक कवि ने कभी कही थी — एक ऐसा कथन जो भीतर तक झकझोर देता है।
किसी कवि ने कभी कहा था —
"प्रेम तो उम्र ढलने के बाद भी हो सकता है...
लेकिन सम्भोग केवल एक उम्र तक ही संभव है।
इसलिए जब कभी चुनना हो, तो सम्भोग को चुनो..."पहली नज़र में यह बात स्वार्थपूर्ण लग सकती है। पर यदि ध्यान से सोचें, तो यह एक गहरे यथार्थ की ओर इशारा करती है।
हम इंसानों की ज़िंदगी दो स्तर पर चलती है — भावनात्मक और शारीरिक।
प्रेम भावनाओं का, आत्मा का बंधन है — जो समय के साथ और भी प्रगाढ़ हो सकता है।
लेकिन सम्भोग — यह शरीर की एक सीमित उम्र तक की ज़रूरत और काबिलियत है।शरीर बूढ़ा होता है, इच्छाएं बदलती हैं, पर प्रेम का बीज अगर बोया गया हो — तो वह उम्र के किसी भी पड़ाव पर पनप सकता है।
❓ लेकिन असली सवाल यह है:
जब इंसान जवान होता है, उस समय उसकी शारीरिक ज़रूरतें ज्यादा सक्रिय होती हैं।
ऐसे में अगर आप केवल प्रेम चुनते हैं, तो क्या आप अपने शरीर की उपेक्षा कर रहे हैं?
या अगर आप केवल सम्भोग चुनते हैं, तो क्या आप आत्मा को भूखा छोड़ रहे हैं?
यहां कोई एक सही उत्तर नहीं है।
यह चुनाव हर व्यक्ति को अपने अनुभव, जरूरत, और भावनात्मक समझ के आधार पर करना होता है।🤔🤔🤔🤔🤔🤔👲
आपका क्या मानना है — प्रेम महत्वपूर्ण है या सम्भोग?
या दोनों साथ में?
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